प्रभु ने अपने लोगों की विभिन्न रूचि देखकर नित्यसिद्ध ऐसे अपने बहुत से नाम एवं लीला कृपा कर प्रगट किये और प्रत्येक नाम में अपनी सारी शक्ति भरदी है* इतना ही नहीं मेरे प्रभु की अतिशयता देखो नाम-स्मरण में देश-काल -पात्र का कोई भी नियम और बंधन नहीं रखा *अत: सद्गुरु देव ने समजाया सदा सर्वदा रटते रहो जपते रहो और यही जीवन है ||*
*यन्नामधेयं म्रियमाण आतुर:, पतन् स्खलन् वा विवशोगृणन् पुमान् |*
*विमुक्तकर्मार्गल उत्तमां गतिं, प्राप्नोति यक्ष्यन्ति न तं कलौ जना: ||*
(श्रीमद भागवत -१२-३-४४)
भागवतजी भी यही समजा रहे हैं की *इस लोक में कलियुग के कुप्रभाव से जो लोग शिश्नोदर परायण बन कलि के प्रभाव से अपने मन -वचन- कर्म दूषित बना रहे है और भान भूल चुके है यही उनके दुःख का कारण है* और अभीतक गोकर्ण द्वारा शुकदेवजी के मुख से अमृतमय बनी भगवन्नाम लीलामृत का पान नहीं किया उनके लिए *एक मात्र यही उपाय है की प्रभु के सर्व शक्तिमय नाम-लीलाओं का श्रवण करें - कीर्तन करें - और उसका स्मरण करते हुए सतत भगवन्नाम का ही मात्र आश्रय धारण करें तो ही परम कल्याण है |*
( *गीता भक्तियोग* )
*वेदान्ताचार्य पू श्रीगिरिराजजी*
*के प्रवचन से साभार*