रामनवमी


अयोध्या का सिंहासन शून्य होने जा रहा था क्यों कि दशरथजी ने तीन विवाह किए तथापि रघुवंश आगे नहीं बढ़ रहा था तब अपने कुलगुरु श्रीवशिष्ठ जी की शरण ली और गुरुकृपा से पुत्र कमेष्टि यज्ञ संपन्न हुआ और चैत्रमास के मध्यान्ह काल में सुन्दर नवमी तिथि अर्थात पूर्ण तिथि के दिन मधुमास वसंत के समय मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामलला का प्रागट्य हुआ जो पूरे हिंदुस्तान आर्यावर्त की पूर्ण संस्कृति एवं आदर्श अपने अन्दर समेटे हुए हुआ, मानो जीवन आदर्श का सूर्य प्रकशित हुआ हो ऐसे रघु महाराज के सूर्य वंश में पधारे है।

किन्तु जैसे “रमचरितमानस” में भगवान शंकर के मुख से पार्वतीजी को समझा रहे हैं कि “हरि अवतार हेतु जेहि होई , इदमित्थ्म कहि जाई न सोई “ अतः भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी के प्रागट्य के अनेक कारण है जैसा कि आगे कहा
“राम जनम के हेतु अनेका, परम विचित्र एक तें एका” पर मुख्य एक तो सर्व विदित ही है “जब जब होई धर्म की हानि,” तब तब प्रभु “बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार” अर्थात् प्रभु सदा अनेक कारणों से इस भूतल को पावन करने पधारते है उसमें कभी भी कोई एक कारण नहीं होता किन्तु भक्तों का स्नेह और इच्छा से वशीभूत हो जाना प्रभु को स्वाभाविक है ।

अतः-‎ “व्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुण बिगत बिनोद , सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या के गोद ” || प्रभु भी लालायित रहते है मातु वात्सल्य को पाने, वह व्यापक निर्गुण होने के बावजूद छोटे से बालक बन मनुष्याकृति धारण करते हैं यही उनकी असीम कृपा और महानता है। आज हम राम नवमी का उत्सव मनाते हैं जिसको समस्त हिन्दू समाज उत्साह के साथ मनाता है,।

परिवारिक, सामाजिक, राजकीय एवं नैतिक मर्यादा में रह कर भगवान श्रीराम ने पूरे मानव सृष्टि को उत्तम पुरुषत्व कैसे प्राप्त कर सकते हैं ये अपने अवतार काल में जी कर सिखाया है। मानव कैसे उच्च आदर्श और जीवन लक्ष्य के साथ उन्नति को प्राप्त हो सकता है ये हमें प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन से सिखाया है। तन और मन की विपरीत, परिस्थिति में भी प्रभु ने मानव जीवन की मर्यादा को छोड़ा नहीं है, इसे मानव जीवन से कैसे एक मानव देवत्व को प्राप्त हो सकता है ये बात की प्रतीति हमें महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में करायी है।

प्रभु श्रीराम के जीवन में जो नियमितता, संस्कृति, तेजस्विता और दिव्य प्रतिभा प्रतीत होती है उसके लिए श्रीराम अपने गुरु श्रीविश्वामित्र के आभारी हैं कि जन कल्याण हेतु आपके दिव्य गुणों को अंदर से बाहर प्रकट करा।हरेक मनुष्य राम बनने का ध्येय और आदर्श रख सके उसके लिए महर्षि वाल्मीकि ने श्रीराम चरित्र रचा है, श्रीराम के जीवन में रहे हुए सद्गुण को अपनाकर नर से नारायण अर्थात श्रेष्ठ मनुष्य बनने का सार्थक प्रयत्न करना, श्रीराम के आदर्श और संस्कृति समाज में टिकाये रखने के लिए निरंतर प्रयत्न शील और कटिबद्ध होना ही सही अर्थ में रामनवमी का उत्सव मनाना है।