गंगा दशाहरा


ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगाजी का आगमन हुआ था। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की यह दशमी एक प्रकार से गंगाजी का जन्मदिन ही है। इस दशमी को गंगा दशहरा कहा जाता है।
आज ही के दिन महाराज भागीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगाजी आई थीं।पृथ्वी लोक में अवतरण से पहले गंगाजी का स्वर्गलोक में कैेसे जन्म हुआ और क्या है गंगाजी का स्वरुप ये जाने तो गंगाजी के महत्त्व को सही रूप से समझ सकते हैं.।

.श्री विष्णु अवतार वामन जी ने ब्राह्मण देवता के रूप में राजा बलि से तीन पग भूमि का दान माँगा था, तब राजा बलि ने बड़ी भक्ति के साथ नमस्कार करके प्रसन्नता से दक्षिणा रूप में देने के लिए कहा “आप अपनी इच्छानुरूप इस पृथ्वी को ग्रहण कीजिये।" तब श्रीवामनरूपधारी भगवान विष्णु ने वामन ब्रह्मचारी का रूप त्याग विराट् रूप धारण करके समस्त पृथ्वी को एक ही पैर से नाप लिया। तब सर्वेश्वर विष्णु ने अपने द्वितीय पग को ऊपर की ओर फैलाया। प्रभु नारायण का वह पग नक्षत्र, ग्रह और देवलोक को लाँघता हुआ ब्रह्मलोक के अन्त तक पहुँच गया किन्तु फिर भी पूरा न पड़ा।
उस समय पितामह ब्रह्माजी ने भगवान् के चक्र-कमलादि चिह्नों से अंकित चरण को देखकर हर्षयुक्त चित्त से स्वयं को धन्य मानते हुए अपने कमण्डलु के जल से भक्तिपूर्वक भगवान वामन के उस चरण को धोया।
श्रीविष्णु के प्रभाव से वह चरणोदक अक्षय हो गया। वह निर्मल जल मेरुपर्वत के शिखर पर गिरा और जगत् को पवित्र करने के लिये चारों दिशाओं में बह चला। दिशाभेद से वह लोकपावनी गंगा तीन नामों से प्रसिद्ध हुईं। ऊपर-स्वर्ग लोक में मंदाकिनी, नीचे- पाताल लोक में भोगवती तथा मध्य अर्थात् मृत्यु लोक में ‘वेगवती गंगा’ कहलाने लगी।ये गंगा मनुष्यों को पवित्र करने के लिये प्रकट हुई हैं।

ये कल्याणमय स्वरूप वाली गंगा जब मेरुपर्वत से वेग के साथ नीचे गिर रही थीं, उस समय महादेव जी ने स्वयं को पवित्र करने के लिये गंगा को मस्तक पर धारण कर लिया। तदन्तर राजा भागीरथ और महातपस्वी गौतम ने तपस्या के द्वारा शिवजी की पूजा करके गंगा जी के लिये उनसे याचना की।

तब शिवजी ने सम्पूर्ण विश्व का हित करने के लिये कल्याणमयी वैष्णवी गंगा का जल उन दोनों महानुभावों के लिये प्रसन्नतापूर्वक दान किया। महर्षि गौतम जिस गंगा को ले गये, वे गौतमी(गोदावरी) कही गयी हैं और श्री रामजी के पूर्वज राजा भागीरथ ने जिनको भूमि पर उतारा, वे भागीरथी गंगा के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
हिन्दू धर्म में जिस प्रकार संस्कृत भाषा को देववाणी कहा जाया हैे, उसी प्रकार गंगाजी को देव नदी कहा गया है। प्रत्येक आस्तिक भारतीय गंगा को अपनी माता समझता है। गंगा में स्नान का अवसर पाकर कृत-कृत्य हो जाता है। मानव को प्रतिदिन त्रिविध स्नान करना आवश्यक है। मन, बुद्धि और शरीर का स्नान त्रिविध स्नान है।

मन का स्नान भक्ति से, बुद्धि का स्नान सत्संग से और शरीर का स्नान जल से। अगर गंगाजी के स्वरूप को समझ कर भाव से गंगाजी में स्नान करे तो उससे ये त्रिविध स्नान का फल प्राप्त होता है। भाव विहीन स्नान करने से केवल शरीर शुद्धि हो सकती है, अपितु भाव सहित गंगा दशहरा के दिन गंगास्नान और पूजन से दश महापाप नष्ट हो जाते है। जैसे -किसी के दिये बिना लेना, विधि विहीन हिंसा और पर नारी गमन ये तीन कायिक पाप, असत्य बोलना, निंदा, कटुवाण और तीखी वाणी यह चार वाणी के, और दूसरो के धन का लोभ, दूसरो का अहित सोचना, बिना कारण प्रलाप करना ये मन के पाप दूर होते हैं, और शरीर के साथ मन और बुद्धि को भी विशुद्ध बना सकते हैं।

गंगा दशाहरा का वर्णन रामायण, महाभारत, देवी भागवत, श्रीमद् भागवत, स्कन्दपुराण आदि में मिलाता है। कई महर्षि, राजश्री, और संत-महंतो ने गंगाजी की स्तुति करके महिमागान किया है। गंगाजी का तट तपोभूमि कही गई है। कई ब्रह्मर्ऋषियों ने यहाँ तप करके ज्ञान की उपासना करी है। अंतिम समय पर गंगाजल के पान से सद्गति प्रदान करने वाली पावित्रय के प्रेम प्रवाह गंगाजी की भाविक हृदय से जय।