वामन द्वादशी:-


भादरवा सुद बारस वामन जयंती को पुष्टि मार्ग मंदिर में दोपहर 12 बजे राजभोग हो जाने के बाद जन्म के वक़्त शालिग्रामजी को पंचामृत से स्नान होता हे। रसदान और परकीया के मनोरथ पूर्ण करने की भावना से श्रीमस्तक पर किरीट मुकुट और केसरी धोती उपरणा और मत्स्याकृति कुंडल धराये जाते है। और क्योंकि वामनजी ब्राह्मण स्वरूप से पधारे है, इस लिए उसदिन सोने की और मोती की दो जनोई धरायी जाती है।

त्रेतायुग में हुए महान भक्त ध्रुव के पौत्र बलिराजा थे, जो नित्य जप, पाठ और यज्ञ किया करते थे। बलिराजा ने इंद्र के साथ युद्ध में स्वर्ग लोक एवं मृत्यु लोक को जीत लिया था। बलिराजा के कोप से बचने के लिए सभी देवताओं ने स्तुति करी, जिस के कारण प्रभु ने वामन अवतार लिया और बटुक रूप धर कर बलिराजा को वचन बद्धकर जीत लिया।

वचन में प्रभु ने तीन क़दम पृथ्वी को माँग कर कहा कि तीन क़दम पृथ्वी का दान तीन जगत देने जितना पुण्य देता हैे। बलि के वचन देते ही बटुक रूप बड़े होने लगे, वामन रूप प्रभु ने एक क़दम से पूरी पृथ्वी ले ली, दूसरे क़दम से स्वर्ग लोक ले लिया, अब तीसरा क़दम रखने के लिए कुछ नहीं बचा तब वचन बद्ध हुए बलिराजा ने अपने मस्तक पर चरण रखने का आग्रह किया । प्रभु ने चरण रख कर भक्त बलिराजा को पाताल में उतर दिया। ऐसा होने पर भी बलिराजा ने अपनी मर्यादा को नहीं छोड़ा। इससे प्रसन्न हो कर वामन भगवान ने बलिराजा को वरदान दिया और भादरवा सूद बारस से बटुक स्वरूप भगवान बलि के पास रहते है।

दूसरा स्वरूप क्षिरसागर में शेषनाग पर पोढ़ता है, और कार्तिक सूद एकादशी तक वहाँ बिराजते है।

पद:- राग धनाश्री

प्रकटे श्री वामन अवतार।।निरख अदिति मुख करत प्रशंसा जगजीवन आधार।।१।।
तन घनश्याम पीतपट राजत शोभित है भुज चार ।।कुंडल मुकुट कंठ कौस्तुभमणि उर भृगुरेखा सार ।।२।।
देखी बदन आनंदित सुरमुनि जय जय करें निगम उच्चार।।"गोविंद प्रभु" बलि वानम वहै के ठाड़े बलि के द्वार ।।३।।-----------