प्रबोधिनी एकादशी


कार्तिक सुद एकादशी के दिवस चार मास से पोढ़े हुए प्रभु के लम्बी नींद से जगाने की एकादशी है, जिसको प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है।

कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे। अर्थात अपने भीतर उन्हें जगाना होता है, यह अपने आप को जगाना है। जब तक हमें हम पर ही भरोसा नहीं तब तक प्रभु भी हमारी सहायता नहीं करते।आज प्रत्येक जीव आलस, अज्ञान और अंधकार की घोर निंद्रा में सोया हुआ हैं, और केवल जागने का दिखावा कर रहा है। बहुत कम मानव अपने मानसिक,बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास के लिए जाग्रत हैं।

ऐसे सोते हुए को जगाना, जागते हुए को खड़ा करना, खड़े हुए को चलता करना और चलते हुए को यथार्थ लक्ष्य की ओर दौड़ाने का उद्देश और प्रेरणायुक्त हमारी संस्कृति हैं। आज भौतिक सुख में ही ओत-प्रोत जीव अपने जीवन के लक्ष्य, भाव, प्रेम, आनन्द, संस्कार इत्यादि की ओर बेध्यान हुआ है।
हमारे शास्त्रकार, आचार्य ,गुरुजन..भी हमें बार बार टटोल कर अज्ञान की घोर निंद्रा से उपदेश द्वारा हमें धर्म, निति, संस्कृति की ओर जाग्रत करते रहे हैं।

मानव जीवन प्रभु की अमूल्य कृपा का संकेत है,और उसका मानव जीवन के लक्ष्य हेतु सदुपयोग की ओर जाग्रति का संदेश देने वाली एकादशी अर्थात प्रबोधिनी एकादशी। आप सभी के हृदय में, मन में, जीवन में सही अर्थ में देव प्रबोधन हो और प्रभु सदा आनंद से बिराजें यही शुभ अभ्यर्थना प्रभु श्रीगोपिनाथजी के चरणों में करते हुए देव उठनी एकादशी की, देव प्रबोधनी की आप सभी को ढेरो बधाईयां।।