चतुर्मास का माहात्म्य


चतुर्मास का समय प्रकृति के लिए जैसे पुनर्निर्माण का समय होता है। इन दिनों भगवान् श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। और वर्षाजल से अभिसिंचित हो कर पृथ्वी वनस्पतियों का उत्पादन करके स्वयं को और जीव को पोषण की व्यवस्था के लिए तैयार करती है। इस समय में हमें भी अपनी शक्तियों को बल देने के लिए कुछ नियम लेने चाहिए। जिससे विकार रूप लोभ, मोह, द्वेष , ईर्ष्या, रखे बिना आनन्द और सहजता जीवन चर्या में शामिल रहे। श्री ठाकुरजी मेरे हैं और सबके हदय में बिराजमान हैं ऐसा ही भाव सबके ऊपर रख कर सेवा के लिए कुछ नियम धारण कर सकते हैं....जैसे- प्रातः सेव्यस्वरूप को दंडवत कर, कोई सेवा करके फिर ही अन्य कार्य करेंगे।-सेवा में स्वयं के तन-मन-धन का उपयोग हो इस प्रकार नित्य सेवा करेंगे। इस तरह की सेवा सिद्ध करने नित्य सुंदर मालाजी बना कर धराना, सुंदर श्रंगार करना, नित नई भोग सामग्री बनाना, कीर्तन-पद गान करना, आश्रय पद गान सोने से पहले करना आदि के लिए प्रयास करेंगे।- प्रभु के समक्ष भगवद् संबंध के बिना की कोई बात नहीं बोलेंगे।- लौकिक-अलौकिक किसी प्रकार की कामना प्रभु से नहीं करनी। संतोषी रहेंगे।- वैष्णव और गौ की यथासंभव सेवा करेंगे और नित्य गौग्रास निकालेंगे।- सतसंग, स्वाध्याय, जप के लिऐ समय निकालेंगे।इस प्रकार करते हुऐ क्रोध आदि से बच कर सेवा में संलग्न रहकर चतुर्मास को सार्थकता से व्यतीत करके प्रभु कृपा का विशिष्ट अवसर बना सकते हैं।