कथा- कथा में भेद है


एक बार वत्सा भट्ट नामक एक भागवत् के कथाकार मोरवी में आऐ। कथा करने के बाद उनकी प्रसिद्धि हुई। भट्टजी को बादा अपने घर पर लेकर आए और उनके सेवक हुए। बाद में वत्सा भट्ट द्वारका यात्रा के लिए निकले।

एक साल के बाद महाप्रभुजी मोरवी पधारे। मोरवी के लोग महाप्रभुजी का अलौकिसौराष्ट्र में मच्छु नदी के किनारे मनोहर ‘मोरवी’ नामक एक गाँव है। वहाँ पुष्करना ब्राह्मण परिवार में एक बालक था। उस के माता पिता प्रेम से उसको बादा कहते इसलिए उसका नाम बादा ही हो गया। उम्र बढ़ने पर १३साल में उनका लग्न हो गया।

क चरित्र सुनकर उनके दर्शन को आऐ। बादा भी साथ गए। महाप्रभुजी ने सबकी बिनती को सुनकर ‘भ्रमर गीत’ की कथा सुनानी शुरू की। प्रभु के मथुरा जाने के बाद विरही गोपीजनों के पास उद्धवजी पधारे तब गोपीजनो ने जो उद्धव जी को वचन कहे, वो ये भ्रमर गीत है।ये प्रेम भरे, प्रेम विवश अलौकिक शब्द सुन कर बादा को मूर्छा आ गई और एक प्रहर तक रही। जब उनको होश आया तब सोचने लगे कि वत्सा भट्ट के पास गए, उनसे भागवत् कथा सुनी परन्तु इतना आनंद कभी नहीं आया जितना आज आया।

बादा ने महाप्रभुजी को बिनती करी," महाराज मुझे सेवक बनाओ"।

अंतरयामी महाप्रभु जी ने कहा, “भाई आप तो वत्सा भट्ट के सेवक हो। एक ही जन्म में गुरु बदलने से क्या फायदा होगा? हम आपको दुबारा सेवक नहीं बना सकते।" बादा ये सुनकर दु:खी होकर घर चला गया, घर जाकर सब बात अपनी पत्नी को बताई। पत्नी ने कहा, आपको बिनती करना ही नहीं आया, चलो हम साथ में चल कर महाप्रभुजी को बिनती करते हैं।
दोनों ने आकर दंडवत किया। बादा की पत्नी बोली-महाराज आप पतित पावन हो, हम संसार में पड़े अधम जीव हैं, हम जैसे अधम जीवों के उद्धार के लिए ही आप भूतल पे आये हो। आप हमें शरन में नहीं लोगे तो हम कहाँ जाएंगे।

महाप्रभुजी ने पूछा, बाई "हमारे सेवक बनने से आपको क्या लाभ होगा?"

"महाराज,वत्सा भट्ट से भागवत् सुनी पर कोई फल नहीं मिला, जो अपना गुजारा करने हेतु, अपनी रोजी रोटी के लिए भागवत् कथा करे इससे हमारा क्या उद्धार करेंगे!
इसलिए आप हमे सेवक बनाए और हमारा उद्धार करें।
श्री महाप्रभुजी ने आज्ञा की; "अभी शाम हो गई है, कल सुबह आना। दूसरे दिन सुबह दोनों आये और सेवक हुए तब श्रीमहाप्रभुजी ने श्रीनवनीतप्रियाजी के प्रसादी वस्त्र उनको सेवा के लिए पधरा के दिए।

फिर महाप्रभु जी ने आज्ञा करी "महर्षि बादरायन ने श्री भागवत् को प्रगट किया। आपकी भागवत् प्रीति ने आपको प्रभु के सेवक बनाया है। इसलिए आज से आप बादरायनदास नाम से प्रसिद्ध होंगे। अब आप दोनों मिल कर सेवा करना। भागवत का पाठ करना। ठाकुरजी आप पर जरूर कृपा करेंगे।"

"महाराज, श्री ठाकुरजी की सेवा करें, उस से पहले कुछ समय आपकी सेवा करने का मनोरथ है। आप आज्ञा करो तो आपके साथ द्वारका चलें और आपकी सेवा करें।"

ये सुन कर महाप्रभु अति प्रसन्न हुए। दोनों महाप्रभुजी के साथ द्वारका चले। बादरायनदास की पत्नी जल भरने की सेवा करती और बादरायनदास महाप्रभुजी के वस्त्रों को साफ करते और रात को महाप्रभुजी के चरन दबाकर सोते। ऐसे दोनों ने १साल तक सेवा करी। तब फिर महाप्रभुजी ने घर जा कर सेवा करने की आज्ञा की।

सिद्धांत नवनीत:
१) 'जल भेद मे श्रीमहाप्रभुजी ने वक्ता के प्रकार बताए हैं। भागवत् प्रभु का ही स्वरूप है। प्रभु के ६ दिव्य धर्म प्रभु की कथा में भी हैं। भागवत श्रवण के फल का आधार कथा के वक्ता के ऊपर होता है। जो वक्ता रोजी चलाने के लिए कथा करते हैं, उनकी कथा श्रवण करने से श्रोता का मन भी लौकिक में ही अटका रहता है। उनका उद्धार नहीं होता। इसलिए जिसके हृदय में निष्काम भक्ति हो उससे ही भागवत् सुनने का आग्रह रखना चाहिए। वह ही अलौकिक फल देने वाली है। इसलिए हर किसी से भागवत् सुनना सही नहीं है।

२) श्रीमहाप्रभुजी आदि गुरू स्वरूप को दीनता पूर्वक बिनती करनी चाहिए। श्री हरि- गुरु- वैष्णव के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए और कैसे बात करनी चाहिए ये समझना भी बहुत जरुरी हैं। तभी उनकी कृपा प्राप्त होती है।

३) श्रीमहाप्रभुजी जिनको सेवक बनाते है, उनका इसी जन्म में उद्धार निश्चित है, फिर उनको दुबारा जन्म लेने की आवश्यकता नहीं रहती।

४) श्री गुरु की सेवा करने से गुरु की प्रसन्नता प्राप्त होती है। और गुरु प्रसन्न होने पर श्रीठाकुरजी प्रसन्न होते हैं। इसलिये आदर और आग्रह पूर्वक गुरु सेवा करनी चाहिए।