राधा-अष्टमी



श्रीकृष्ण के विहारस्थल गोलोकधाम में श्रीगोलोकेश्वरी के नाम से जो विद्यमान है, जो स्वयं श्रीकृष्ण का ही दूसरा रूप प्रकृति स्वरूप हैं, जो स्वयं ब्रह्मस्वरूप, नित्य और सनातन हैं, इन श्रीराधाजी का प्राकट्य प्रभु के प्राकट्य के दो वर्ष पूर्व भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन हुआ।

राधा अर्थात :- समृद्धि, धृति(प्रकाश) ,कृष्ण कार्य साधिका और, कृष्ण भक्ति प्रदायिनी श्रीगोविन्द नंदिनी, गोविन्द प्रेम पूरनी, गोविन्द मोहनी, श्रीगोविन्द सर्वस्व, सर्व कला कांता शिरोमणि कृष्ण आल्हाद दायिनी रस शक्ति प्यारी श्री राधिके हैं। जो मात्र श्री कृष्ण के सुख हेतु ही इस भूतल पर पधारी हैं।

जिनके दर्शन महान देवों को भी दुर्लभ हैं। तत्वज्ञानी हज़ारों वर्ष तप करने पर भी जिनकी झांखी नहीं पा सकते एसी रूप और सुंदरता की साम्राज्ञी और करुणामूर्ति श्रीराधाजी साकार रूप से प्रभु गोकुलचंद के आनंद हेतु ही प्रकट हुई हैं।
निष्काम प्रेम की वो अधिष्ठात्री रूप है। रस की उत्तपत्ति का मूल श्री राधा है। राधा में "र" का मतलब रस और "ध" माने धारा है। रस की धारा, जब प्रेम और रस एक होते हैं तब अलौकिकता के दर्शन प्राप्त होते हैं। श्रीराधा की कृपा से श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त होते हैं। वो श्रीकृष्ण की प्रेम शक्ति है। सर्व देवों में दैवी शक्ति राधाजी हैं, सृष्टि के सर्व जीव भी श्रीराधाजी की शक्ति से अस्तित्व में हैं।
अलौकिक-आध्यात्मिक रूप में श्रीराधाजी को श्रीकृष्ण की पूर्ण सिद्ध शक्ति के रूप में माना गया है।
श्रीराधाजी स्वयं आनंद रूप है। केवल प्रेम भाव ही राधाजी को पाने का मार्ग है।

महाप्रभु श्री वल्लभाचार्यजी ने अपने मार्ग में "गुरु" के रूप में व्रज की गोपियों का स्वीकार किया है। जिनकी मुख्या राधाजी हैं। श्रीमहाप्रभुजी के इस मार्ग में गोपियों के चार यूथ माने गये हैं।
जिसका पहला यूथ- नित्यसिद्धा सखी की यूथपति स्वयं श्रीराधा सहचरी के रूप में है ।
दूसरा यूथ- "श्रुति रूपा" गोपीयों के यूथपति श्रीचंद्रावलीजी है।
तीसरा यूथ - " ऋषि रूपा" गोपिका के यूथपति श्रीललिताजी है।
और
चतुर्थ यूथ- प्रकीर्ण गोपिका के यूथपति श्रीयमुनाजी है।
इन सभी गोपियों पर प्रभु की अतिकृपा रहती है। इन गोपियो को श्रीकृष्ण के नित्य साहचर्य का जो सुख मिला है और वियोग के ताप का जो अनुभव किया है, वहीं सुख और ताप का अनुभव दैवी जीव को कराने हेतु "श्री स्वामनिजी स्वयं श्रीमहाप्रभुजी के स्वरूप में कलयुग में पधारे हैं।

पुष्टिमार्ग श्रीस्वामनिजी को श्रीकृष्ण की अभिन्न मुख्य शक्ति मानते है। जिनका सहज निवास श्रीकृष्ण के साथ सर्वत्र है।
क्योंकि पुष्टि भक्ति मार्ग में श्री सहित कृष्ण की भक्ति का विधान है और वह श्री ही कृष्ण की आल्हादिनी शक्ति, गोविन्द सर्वस्व श्री राधिकाजी हैं और चार यूथों के अधिपति होने के साथ और आलावा भी कृष्ण का ही दूसरा स्वरुप श्री राधिका सदा उनके साथ अभिन्न रस स्वरुप से नित्य निवास हृदय में विचार और भाव में निवास करने वाली राधाजी हैं अतः राधा सहचरी और श्री राधाजी दोनों ही भिन्न होते हुए एक हैं क्योंकि चारो ही यूथ के अधिपति श्री राधिकाजी श्री अंग और भावो से मात्र अपने स्वामी प्रियतम रासरसेश्वर श्री कृष्ण को सुख देने ही हुई है एसी सदा मात्र अपने स्वामी के सुख हेतु परमानन्द रस में मग्न श्री राधिकाजी ही श्री स्वामिनी स्वरुप श्री वल्लभाचार्यजी महाप्रभुजी के स्वरुप में अपने स्वामी श्री कृष्ण के सुख हेतु ही भूतल पर पधारे और उन लीला के जीवो को रास रस में नित्य सेवा में निमग्न कर दिया अतः श्री विट्ठलनाथजी सर्वोत्तम में आज्ञा करते हैं कि आपश्री वल्लभ का तात्पर्य भूतल पर पधारने का एक ही है “रास लीलैक तात्पर्य” इस नाम से श्री राधिकाजी स्वामनिजी के ही हेतु को सिद्ध कर रहे हैं अतः कृष्ण को मात्र १५ दिनों में पूर्ण किशोर अवस्था में ला कर रस से भर देने वाली श्री राधिकाजी का प्राकट्य उतना ही महत्व पूर्ण है..........।।
"जय जय श्री राधे जय जय श्री राधे
जय गोपीनाथ