गीता जयंती


मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन श्रीमद् भगवद् गीता का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था।श्रीमद् भगवद् गीता याने श्री कृष्ण के मुखमंडल से निकला हुआ माधुर्य और वांग्मय सौन्दर्य का स्वरुप। व्रज में श्री कृष्ण ने अपनी ‘प्रेममुरली’ से व्रज वासियों को मुग्ध किया, तो द्वारिका में श्री कृष्ण ने अपनी ‘ज्ञानमुरली गीता’ से विषाद युक्त अर्जुन को स्वधर्म के लिए प्रेरित कर शरणागति मे स्थिर किया। इस ज्ञानमुरली ने तब से लेकर अब तक के सर्वज्ञानी, कर्मयोगी, भक्त, महात्मा, संत, ऋषि, सेवक... सभी को मुग्ध किया है।यह विश्व की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक “श्रीमद् भगवद् गीता’ भारत की संस्कृति और सभ्यता का मूल आधार है। यह किसी जाति, धर्म विशेष का ग्रंथ नही बल्कि सम्पूर्ण मानवता का ग्रंथ है। मानव का ध्येयशून्य जीवन बिना माझी की नैया जैसा होता है। एसा मानव जीवन रूपी सागर में मिली हुए शक्तिओं को व्यर्थ गवां देता है। ऐसे ध्येयशुन्य जीव को गीताजी ध्येय से बांधती हैं। आज का युग परमाणु युद्ध की विभीषिका से भयभीत है । ऐसे में गीताजी का उपदेश ही हमारा मार्गदर्शन कर सकता है। आज मनुष्य प्रगतिशील होने पर भी कर्त्तव्य-विमूढ़ है। अत: वह ‘श्रीमद् भागवद् गीता’ के मानस शास्त्रीय जीवनकला से मार्गदर्शन प्राप्त कर अपने जीवन को सुखमय और आनन्दमय बना सकता है।18 अध्याय में विस्तृत यह विचार और भाव यात्रा स्मृतिलोप से स्मृति प्राप्ति की ओर, विषाद से विजय की ओर, बंधन से मुक्ति की ओर ,भेद बुद्धि से अभेद बुद्धि की ओर, संशय से श्रद्धा की ओर और श्रद्धा से मोक्ष के ओर की यात्रा है।जिसमें आत्मा की अमरता ,शरीर की नश्वरता, निष्काम कर्म, कर्तव्य, कर्मफल त्याग, ब्रह्मज्ञान, स्वधर्म,भगवान, भक्ति, त्याग, सन्यास, मन को वश में करने के उपाय, प्राकृतिक ज्ञान, तीन गुण और उसका महत्व, क्रियाओं का असर एवं इच्छा, लोभ और क्रोध को नष्ट कर जीवन सागर से पार उतरने के उपाय कहे गए हैं।श्रीमद् भागवद् गीता में कहे गए भगवान के पवित्र संदेश हमारे जीवन में उतार कर हमारी मति और वृत्ति को सही दिशा प्राप्त हो, सही अर्थ में पार्थ बनने का संकल्प हो, श्री कृष्ण हमारे जीवन रथ के सारथी बनें और मानव सर्वोपरि आनंद को प्राप्त कर सार्थक जीवन की प्राप्ति का उपदेश ही सही अर्थ में ‘गीता जयंती’ का उत्सव है।