भगवान्‌ की मर्ज़ी


भगवान्‌ की मर्ज़ी



नाव मैं बैठ कर साधु बाबा कहीं जा रहे थे साथ में और भी बहुत लोग थे। बीच धारा में नाव बहने लगी ज्यों ही वह नौका जोरसे बही, मल्लाह ने कहा अपने इष्ट को याद करो, अब नौका हमारे हाथ में नहीं रही। पानी तेजी से आ रहा है और आगे भवर पड़ता है, अतः प्रभु को याद करो।' यह सुनकर कई तो रोने लगे, भगवान्को याद करने लगे। बाबाजी भी बैठे थे। उनके पास कमण्डलु था । उन्होंने 'जय सियाराम जय जय सियाराम, सियाराम जय जय सियाराम' बोलना शुरू कर दिया और

कमण्डलुसे पानी भर-भरकर नौकामें गिराने लगे। लोगों ने कहा- 'यह क्या करते हैं?' पर कौन सुने! वे तो नदी से पानी नौका में भरते रहे और 'जय सियाराम जय जय सियाराम कहते रहे। कुछ ही देर में नौका घूमकर ठीक प्रवाह में

गयी, जहाँ नाविक कुशलता से नाव चला सकता था। तब नाविक बोला 'अब घबरानेकी बात नहीं रही, किनारा निकट है।' यह सुनकर बाबाजी नौका से पानी बाहर फेंकने लगे और वैसे ही 'जय सियाराम जय जय सियाराम बोलते रहे । लोग बोले- 'तुम पागल हो क्या? ऐसे-ऐसे काम करते हो?' साधु बाबा बोले 'क्या बात है भाई?' लोगों ने कहा-'तुमको दया नहीं आती? साधु बने हो। वेष तो तुम्हारा साधु का और काम ऐसा मूर्ख के जैसा करते हो? लोग डूब जाते तब?

बाबाजी—'दया तो तब आती जब मैं अलग होता। मैं तो साधु ही रहा, मूर्खका काम कैसे किया?' लोगों ने पूछा 'जब नौका बह गयी तब तो तुम पानी नौका के भीतर भरने लगे और जब नौका भँवर से निकलने लगी तब पानी वापस बाहर निकालने लगे। उलटा काम करते हो?' बाबाजी - 'हम तो उलटा नहीं सीधा ही करते है। उलटा कैसे हुआ?' इस पर लोग बोले 'सीधा कैसे हुआ?' बाबाजी ने कहा 'सीधा ऐसे कि हम तो पूरा जानते नहीं । मैंने समझा कि भगवान्‌ को नौका डुबोनी है। उनकी ऐसी मर्जी है तो अपने भी इसमें मदद करो और जब नौका प्रवाह से निकल गयी तो समझा कि नौका तो उन्हें डुबोनी नहीं है, तब हमें तो उनकी इच्छा के अनुसार करना है—यह सोचकर पानी नौका से बाहर फेंकने लगे। साधु ही हो गये तब हमें हमारे जीने-मरने से तो मतलब नहीं है, भगवान्‌की मर्जी में मर्जी मिलाना है। पूरी जानते हैं नहीं। पहले यह जान लेते कि भगवान् खेल ही करते हैं, उन्हें नौका डुबोनी नहीं है तो हम उसमें पानी नहीं भरते। पर उस समय मनमें यह बात समझ में नहीं आयी। हमने यही समझा था कि नौका डुबोनी है, यही इशारा है।'

शरणागत भक्त का यही लक्षण है। भगवान की मर्ज़ी में शामिल हो जाना। हमें लगे कि कहीं हमारी नौका डूबने लगी है तो उसमें पानी तो नहीं भरना, परंतु रोना बिलकुल नहीं। यही समझना कि बहुत ठीक है, बड़े आनन्दकी बात है; प्रभु इसमें भी हमारा कोई छिपा हुआ मङ्गल है ।