Kapil Geeta



Kapil Geeta



कपिल गीत आध्याय -१

अथ श्रीमद्भागवत तृतीय स्कन्धान्तर्गता कपिलगीता। प्रथमोऽध्यायः १. शौनक उवाच ॥कपिलस्तत्त्वसंख्याता भगवानात्ममायया ।जातः स्वयमजः साक्षादात्मप्रज्ञप्तये नृणाम् ॥१॥श्रीशौनकजी बोले कि, तत्त्व सांख्यशास्त्र के कर्ता भगवान् कपिलदेवजी मनुष्यों को आत्मतत्त्व का उपदेश करने के लिये अपनी माया से आपही अजन्मा भगवान् ने जन्म लिया ॥१॥न ह्यस्य वर्ष्मणः पुंसां वरिम्णः सर्वयोगिनाम् ।विश्रुतौ श्रुतदेवस्य भूरि तृप्यंति मेऽसवः ॥२॥सब पुरुषों में शिरोमणि, योगिजनों में श्रेष्ठ, ऐसे वासुदेव भगवान् की कीर्ति और परमेश्वर के अत्यन्त चरित्र सुनने से भी मेरी इन्द्रियें तृप्त नहीं होतीं ॥२॥
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कपिल गीत - द्वितीयोऽध्यायः २

द्वितीयोऽध्यायः २श्रीभगवानुवाच :अथ ते संप्रवक्ष्यामि तत्त्वानां लक्षणं पृथक् ।यद्विदित्वा विमुच्येत पुरुषः प्राकृतैर्गुणैः ॥१॥श्रीभगवान् बोले कि अब मैं तुम को तत्त्वों के लक्षण पृथक् सुनाता हूं, जिनके जानने से पुरुष प्रकृति के गुणों से मुक्त हो जाता है ॥१॥ज्ञानं निःश्रेयसार्थाय पुरुषस्यात्मदर्शनम् ।यदाहुर्वर्णये तत्ते हृदयग्रंथिभेदनम् ॥२॥पुरुष के आत्मा का दर्शन जो ज्ञान मोक्ष के लिये है सो तुम से वर्णन करता हूं, वही ज्ञान हृदय की ग्रन्थि का भेदन करने वाला है ॥२॥
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