मानव ने विश्व मे आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति की है, आज कई भौतिक उपलब्धियों को प्राप्त किया है। जीवन का स्तर भी ऊपर हुआ है। घर में अनेकों सुविधाए बढ़ी हैं फिर भी न जाने क्यों जीवन में कुछ अधूरेपन का अहसास है। मानव कभी कल्पना में न आने वाली सिद्धियों को उपलब्ध हुआ है। पर साथ ही उसने मन की शांति को खोया है। मन की इसी अस्वस्थता के कारण सब कुछ होने के बाद भी खलीपना का भाव बना रहता है। सुख के संदर्भ में हम पिछली पीढियों की अपेक्षा निर्धन हैं।जीवन में आनंद के बदले दुःख, विषाद, संघर्ष, अधैर्य विकृति असमंजस जैसीे स्थिति का अनुभव करता है।यही जीवन की सत्यता है।
भौतिक सुविधाए क्षण भर का सुख तो दे सकती हैं लेकिन आनंद नहीं, ऐसे में हमारे देश की संस्कृति, ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रन्थ, हमारे ऋषि मुनियों के दर्शनशास्त्र ही एक आशा की किरण हैं, मन की शांति और आन्नद के लिए। आज विदेशी लोग धन संपन्न लोग उच्च पदस्थ लोग भी उसी दिशा की और मुड़ रहे है और भारतीय वैदिक संस्कृति और शास्त्रों को समझने और उसको जीवन में उतार कर परम आनंद शांति की चाहना कर रहे है। आज का युवान हमारी इस अपूर्व धरोहर से जैसे वंचित ही है। मानव जीवन को उन्नत करने वाले हमारी वैदिक पौराणिक प्रणाली खो सी गई है। पहले घर भी एक संस्कार केंद्र हुआ करता था, जो इस आधुनिक जीवन शैली में खो सा गया है। शिक्षण संस्थाए चारित्र निर्माण केंद्र की जगह व्यापारिक संस्थान बन गए हैं। और जीवन का कल्याण करने वाली विद्या लुप्त प्रायः हैं। भौतिक विकास की उपलब्धि की कीमत हमने अध्यात्मिक शिक्षण और शांति को खो कर चुकाई है। और यह हमारे भविष्य के जीवन और बालको के लिए घातक सिद्ध हो रहा है।
ऐसे समय में मन को स्वस्थ और संयमित रखने के लिए आवश्यकता है मन को परम प्रेम-शांति और पूर्ण आनंद से भरने की जिससे हम सहज सरल हो कर स्नेह पूर्ण व्यवहार कर सकें और सौहार्द प्राप्त करें। यह मात्र प्रभु में आसक्त कराने वाले सत्संग से ही होगा | आज सम्प्रदाय के सिद्धांतो की समझ का अभाव है जो अकाल की तरह समाज में खलता है, जिसको दूर करने के लिए अच्छे विचार ,अच्छे ग्रन्थ का अध्ययन और संतो का समागम अति आवश्यक होता है। पहले के समय में शिष्य गुरुकुल में रहते थे, ताकि उनका ध्यान पढाई और जीवन-शिक्षा से भटके नहीं, पर आज के नए दौर में वह परम्परा नहीं रही है इस लिए ऐसी जीवन अध्ययनात्मक शिविर आयोजनों की अवश्यकता है।
श्रीमहाप्रभुजी गोपीनाथजी का मार्ग संसार की आसक्ति से दिव्यता की और ले जाने वाला मार्ग है, यह स्वास्थ्य और आनंद से भरा संतुलित जीवन का मार्ग है। प्रभु सेवा से प्रभु में आसक्त कराने वाला मार्ग है। ऐसे मार्ग की रीत और सिद्धांतों के द्वारा इसी प्रेरणात्मक जीवन में दैवी जीव प्रवृत बने, इस हेतु ‘धार्मिक संस्कार शीविर ‘ का आयोजन अनिवार्य बना है।
आज के युवा और बच्चे आने वाले कल के प्रकाश की किरण हैं। उनको आज अपने धर्म, मार्ग और रीति-रिवाजों के लिए कई सवाल हैं सही रीत जानने की जिज्ञासा है, नया जानने की अभिलाषा है। ऐसे युवा और आने वाली पीढी को एवं आज के अधिकारी जीवों को संस्कारित करने के लिए हमारे सद्गुरुओं, विद्वान शास्त्रियों संतो के द्वारा धर्म संस्कार शिविर द्वारा शिक्षण की अत्यंत आवश्यकता है। जहां सभी के प्रश्नों का योग्य समाधान मिल सके और उनको धर्म के मार्ग पर विश्वास और श्रद्धा के साथ सही राह मिल सकें।