Kirtan



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प्रात:काल आश्रय का पद

प्रात समे श्री वल्लभसुत को उठत ही लीजिये रसना नाम।आनंदकारी प्रभु मंगलकारी अशुभहरण जन पूरण काम।याही लोक परलोक के बन्धुको कही सके तिहारो गुणगान।नंददासप्रभु रसिक शिरोमणि राज करो श्री गोकुल सुख धाम।
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मंगला कीर्तन

जागिये गोपाल लाल देखों हों मुख तेरो,पाछे गृहकाज करों हों नित्य नेम मेरो।अरुण दिशा विगत निशा उदय भये भानु,कमलन तें भ्रमर उड़े जागिये भगवान।बंदीजन द्वार ठाड़े करत यश उच्चार,सरस वेद गावत हैं लीला अवतार।परमानंद स्वामी गोपाल परम मंगल रूप,वेदपुराण गावत हैं लीला अनूप।
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अभ्यंग के पद " स्नान

करत शृंगार मैया मनभावत ।शीतल जल उष्ण कर राख्यो ले लालन को बैठ न्हवावत ।।१।। अंग अंगोछ चोकी बैठारत प्रथमही ले तनिया पहरावत ।देखो मेरे लाल ओर सब बालक घरघर ते कैसे बन आवत ।।2।।पहरो लाल ञगा अति सुंदर अखीया अंजके तिलक बनावत ।सूरदासप्रभु खेलत आंगन लेत बलैया मोद बढावत ।।3।।
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मंगला सन्नमुख

गोवरधनगिरि सघनकंदरारैननिवास कियो पियप्यारी ||उठचले भोर सुरत रंगभीनेनंदनंदन वृषभान दुलारी || १ ||इत बिगलित कुचमाल मरगजीअटपटे भूषन रगमगी सारी ||उतही अधर मसि पाग रहीधसि दुहूँदिश छबि बाढि अतिभारी || २ ||
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कृपा तो लालन जू की चाहिये

कृपा तो लालन जू की चाहिये, इनने करी करें सो आछी अपने सिर पर सहिये।।अपनो दोष विचार सखी री उनसों कछू न कहिये,सूर अब कछु कहबे की नाहीं श्याम शरण ह्वे रहिये।।
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हिंडोर के कीर्तन

राग मल्हार :- (१) झूलों तो सुरत हिंडोरे झुलाऊं । मरुवे मयार करो हित चित के तन मन खंभ बनाऊं । सुधि पटली बुद्धि डांडी बेलन नेह बिछौना बिछाऊं। अति ओसेर धरों रुचि कलसा प्रीति ध्वजा फहराऊं। गरजन कुहुक किलक मिलवे को प्रेम नीर बरखाऊं। श्री विट्ठल गिरिधरन झुलाऊं जो इकले कर पाऊं॥ अर्थ — हे प्रभु! आप झूलना चाहो तो स्मृति (यादों) के हिंडोरे में झूला झुलाऊं। मरुवे और मयार प्रीति प्यार के तथा तन और मन के खंभे बनाऊं । स्मरण की पटली और बुद्धि की डांडी- बेलन बनाऊं, प्रेम का बिछौना बिछाऊं, रुचि रूपी हिलोरों के कलश और ध्वज फहराऊं, गर्जना, कुहक किलकारियाँ भरना आदि मिलने के लिए सब करूँ और प्रेम अश्रु- नीर बहाऊँ । श्री विट्ठलनाथ जी अपने प्रभु को यदि अकेले प्राप्त कर सकूँ तो सुरत के हिंडोले में झुलाऊं ॥
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जन्माष्टमी के कीर्तन

राजभोग असावरी :-गावो गावो मंगल चार वधावो नंदके। आवो आंगन कलश साजिके दधि फल नौतन डार वधावो नंदके।उरसों उर मिलि नंदराय गोप सबै निहारी। मागध सुत बंदीजन मिलिके द्वार करत उच्चारी।पायो पूरन आस करी सब मिलि देत असीस। नंदरायको कुँवर लाडिलो जीवो कोटि बरीस।तब व्रजराज आनंद मगन मन दीने वसन मंगाय। ऐसी शोभा देखिके जन 'सूरदास' बलि जाय ।।अर्थ- आओ नन्द बाबा के यहाँ बधाई हेतु मंगलाचार के गीत गाओ। चौक में सुन्दर मंगल कलश को स्थापित करो, दूध, दही, फल एवं नई डालियों से नंदरायजी को बधाई दो। श्री नंदराय जी सभी ग्वालों पर प्रसन्न हो रहे हैं, हृदय से लगाकर, प्रसन्न चित देख रहे हैं। मागध, सूत, भाट एवं चारण सभी दीर्घायु का आशीर्वाद दे रहे हैं कि मनोरथ पूर्ण करने वाले नंद के पुत्र करोड़ों वर्ष जिएँ। ब्रज के राजा ने आनंद में मग्न होकर वस्त्रों को मंगवा कर दान दिया है। श्रीसूरदासजी दर्शन की शोभा पर न्योछावर हो रहे हैं।
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श्रीमहाप्रभुजी के पद

श्रीमहाप्रभुजी - रामकली: जो पे श्री वल्लभ चरण गहे। तो मन करत वृथा क्यों चिंता हरि हिय आय रहे । जन्म -जन्म के कोटीक पातक छीनही मांज दहे। साधन कर साधो जिन कोऊ सब सुख सुगम लहे। कोटि- कोटि अपराध क्षमा कर सदा नेह निबहे ।
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श्री गुसांईजी के पद

श्री गुसांईजी :रामकाली :- श्री वल्लभ सूत के चरण भजो। नंदकुमार भजन सुख- दायक पतितन पावन करण भजो। दूर किये कलि कपट वेद विधि मत प्रचंड विस्तरण भजो ।अतुल प्रताप महिमा श्याम यश ताप शोक अध- हरण भजो। पुष्टि मार्यादा भजन सुख सीमा निज जन पोषण - भरण भजो।' नंददास' प्रभु प्रकट भये दोऊ,श्री विट्ठलेश गिरधरन भजो।4।।
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श्री यमुनाजी:के पद

श्री यमुनाजी: १)रामकाली :- यह प्रसाद हो पाऊँ श्री यमुना जी। तुम्हरे निकट रहौ निसि- बासर राम- कृष्ण गुन गाऊँ। मज्जन करों विमल जल पावन चिंता- कलेश बहाऊँ। तिहारी कृपा ते भानु की तनुजा हरि -पद -प्रीति बढाऊँ । बिनती करों इहै बरु माँगों अधम- संग बिसराऊँ। 'परमानंददास 'सुख -दाता मदनगोपालहिं भाऊँ ।
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