कृपा तो लालन जू की चाहिये,
इनने करी करें सो आछी अपने सिर पर सहिये।।
अपनो दोष विचार सखी री उनसों कछू न कहिये,
सूर अब कछु कहबे की नाहीं श्याम शरण ह्वे रहिये।।
अर्थ--सूर दासजी ने सिर्फ यशोदा जी के लालन श्रीकृष्ण की कृपा को ही सर्वोपरी बताया है, वह कहते हैं कि जो भी जीवन में घटित हो प्रभु इच्छा जान प्रेम से सहना। प्रभु के प्रति दोष वुद्धि कभी न रखना, कभी न कहे कि प्रभु मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ, प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न हो तो ये समझें कि अवश्य ही इस जीव की कोई गलती रही होगी। वेेसे तो जब श्री कृष्ण की शरण में आये हैं तो कुछ कहने की जरूरत ही नहीं। क्योंकि प्रभु तो करुणा के सागर हैं, दीनों पर सदा कृपा करते हैं।