उद्धव उवाच:देवदेवेश योगेश पुण्यश्रवणकीर्तन ।संहृत्यैतत् कुलं नूनं लोकं संत्यक्ष्यते भवान् ।विप्रशापं समर्थोऽपि प्रत्यहन्न यदीश्वरः ॥१॥उद्धवजी ने कहा -योगेश्वर! आप देवाधिदेवों के भी अधीश्वर हैं। आपकी लीलाओं के श्रवण-कीर्तन से जीव पवित्र हो जाता है। आप सर्वशक्तिमान् परमेश्वर हैं। आप चाहते, तो ब्राह्मणों के शाप को मिटा सकते थे । परंतु आपने वैसा किया नहीं।इससे मैं यह समझ गया कि अब आप यदुवंश का संहार करके, इसे समेट कर अवश्य ही इस लोक का परित्याग कर देंगे ॥१॥
Uddhav Gita /उद्धवगीता - अध्याय -2
अवधूतोपाख्यान- पृथ्वी से लेकर कबूतरतक आठ गुरुओं की कथाश्रीभगवानुवाचयदात्थ मां महाभाग तच्चिकीर्षितमेव मे ।ब्रह्मा भवो लोकपालाः स्वर्वासं मेऽभिकाङ्क्षिणः ॥१॥भगवान् श्रीकृष्णने कहा- महाभाग्यवान् उद्धव! तुमने मुझसे जो कुछ कहा है मैं यही करना चाहता हूँ । ब्रह्मा, शंकर और इन्द्रादि लोकपाल भी अब यही चाहते हैं कि मैं उनके लोकों में होकर अपने धामको चला जाऊँ ॥१॥