पुष्टि भक्ति मार्ग का प्रकट्य


हमारे शास्त्रों में, प्राचीन उपनिषदों में अनन्य शरणागति-पुष्टिभक्ति मार्ग बताया गया है। और श्री कृष्ण ने गीता में भी नि:साधनात्मक शरणमार्ग -पुष्टिमार्ग ही उद्धारक बताया है।इस तरह पुष्टिभक्ति मार्ग- कृपामार्ग-अनुग्रह मार्ग वैसे तो कोई नई बात नहीं है। सृष्टि के प्रारंभ से ही सभी जीवों के लिए प्रभु कृपा अनिवार्य रही है।परंतु भगवान से अलग हुए असंख्य साल बीत जाने के कारण जीव को भग्वान के वियोग को लेकर ताप-क्लेश और आनंद का तिरोभाव हुआ है। औरजीव को जगत में लौकिक सुख और विषयसुख की बड़ी लालसा रहती है। जो सुख नित्य सुखदायी तो नहीं ही होता, पर क्षणिक समय का माना हुआ सुख होता है। जीव संसार में आसक्त होता है। और संसार मिथ्या होने के कारण उसका सुख भी मिथ्या होता है। जो अंत में दुःखदायी सिद्ध होता है।क्यों हुआ ऐसा? कौन है ये जीव?:-एक बार श्री कृष्ण, श्रीयमुनाजी की इच्छा को मानते हुये अपनी चतुर्थ प्रिया श्री यमुनाजी और दूसरे लीला के जीवों (सखीओ) के साथ रास खेल रहे थे। एसे में श्री स्वामनीजी को उस तरफ़ आते जान सब लोग हड़बड़ा गये और छुपाने की कोशिश करने लगे। क्यों कि सब जानते थे कि अगर श्री स्वामनीजी को पता चल जाय कि उनके बगेर रास हो रहा है तो वो नाराज़ हो जाएगीं। परंतु किसी को छुपने की जगह नहीं मिली। और तब श्री यमुनाजी जल स्वरूप धारण कर बहने लगी और बाक़ी सब जीव फूल का रूप धारण कर प्रभु के गले की माला बन गए। श्री स्वामनिजी पधारे, तब उनको लगा यहाँ कुछ तो हो रहा था। उन्होने श्री प्रभु को पूछा कि यहाँ रास हो रहा था ना? तो प्रभु ने कहा कि नहीं स्वामनिजी, आप के बगेर तो रास सम्भव ही नहीं। पर श्री स्वामनीजी को भरोसा नहीं आया। और एसे में श्री स्वामनिजी की नज़र प्रभु की ताज़े फूल की माला पर पड़ी। सोचा इतने ताज़े फूल केसे? श्री स्वामनिजी को ग़ुस्सा आया और वो माला खिंच दी, और तब माला के सब फूल बिखर कर नीचे पृथ्वी पर गिरे। यही वो लीला के जीव हैं जो प्रभु से बिछड़ कर पृथ्वी पर आए है।बाद में एक दिन रास खेलते खेलते श्री राधाजी एकदम उदास हो गई। प्रभु श्री कृष्ण की नज़र श्री राधाजी के उदास मुख पर पड़ी,तो उन्होने पूछा कि अरे आप एसे रास खेलते खेलते उदास क्यों हो गई? तब श्री स्वामनीजी ने कहा की प्रभु मेरे कारण सब लीला के जीव आपसे बिछड़कर पृथ्वी पर गिरे हैंं, इसलिये में स्वयं पृथ्वी पर जा कर सब जीव को वापस लीला में प्रवेश करना चाहती हूँ।एसे प्रभु से बिछड़े हुए लीला के देवी जीव के उद्धार हेतु, श्री कृष्ण के अनन्य आश्रय वाले शुद्ध पुष्टिभक्ति की स्थापना हेतु , त्रिविधस्वरूप( श्री स्वामिनी स्वरूप, विरहात्मक अग्नि स्वरूप, श्री प्रभु के मुखारविंद स्वरूप) महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी का भूतल पर प्राकट्य हुआ।क्रमशः--पूज्य श्री गुरूजी के प्रवचन से..संकलन कर्ता- जाग्रति गोहिल