कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आमला नवमी (आंवला वृक्ष की पूजा परिक्रमा), आरोग्य नवमी, अक्षय नवमी, कूष्मांड नवमी के नाम से जाना जाता है।
अक्षय नवमी को ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके इंद्र योग बंध कराने क्रान्ति का शंखनाद किया था। और सात दिन के संघर्ष के पश्चात इंद्र को ज्ञान हुआ की साक्षात् पूर्णपुरुषोत्तम प्रभु ही श्री नंदरायजी के यहाँ प्रकट हुए हैं, और उनके सामने मद और द्वेष करना उचित नहीं है। इंद्र ने सुरभि गाय के दूध से और ऐैरावत हाथी ने आकाशगंगा जल से प्रभु का "गोविंदाभिषेक" किया था। साथ इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए अक्षय नवमी के दिन "गोविंदाभिषेकोत्सव" मनाया जाता है, और लोग आज भी अक्षय नवमी पर असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत के लिए मथुरा वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं। gopinathji.org ©
अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग का प्रारम्भ माना जाता है। अक्षय नवमी और प्रभु की अक्षय लीला का कभी भी क्षय नहीं होता। पुराणों के अनुसार अक्षय नवमी पर जो भी पुण्य किया जाता है उसका फल कई जन्मों तक समाप्त नहीं होता। इस दिन दान, पूजा, भक्ति, सेवा जहां तक संभव हो व अपनी सामर्थ्य अनुसार अवश्य करें। उसी तरह यदि आप शास्त्रों के विरूद्घ कोई काम करते हैं तो उसका पाप भी कई जन्मों तक किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ता है। ध्यान रखें, ऐसा कोई काम न करें जिससे आपकी वजह से किसी को दुख पहुंचे।
आंवला नवमी के दिन सुबह नहाने के पानी में आंवले का रस मिलाकर नहाऐं। ऐसा करने से आपके ईर्द-गिर्द जितनी भी नकारात्मक ऊर्जा होगी वह समाप्त हो जाएगी।सकारात्मकता और पवित्रता में बढ़ौतरी होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी लक्ष्मी का पूजन करें। इस तरह मिलेंगे पुण्य, कटेंगे पाप।
अक्षय नवमी को आँवला नवमी भी कहेते हैं। इस अवसर पर आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। कहते हैं इस दिन भगवान विष्णु एवं शिव जी यहां आकर निवास करते हैं। आज के दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नदान करने का बहुत महत्व होता है।
चरक संहिता में बताया गया है अक्षय नवमी को महर्षि च्यवन ने आंवला खाया था जिससे उन्हें पुन: जवानी अर्थात नवयौवन प्राप्त हुआ था। आप भी आज के दिन यह उपाय करके नवयौवन प्राप्त कर सकते हैं। शास्त्र कहते हैं आंवले का रस हर रोज पीने से पुण्यों में बढ़ोतरी होती है और पाप नष्ट होते हैं।